चरणामृत दो शब्दों से मिलकर बना है। चरण और अमृत। इसका सीधा सा अर्थ हुआ- भगवान के चरणों का अमृत। पौराणिक मान्यताओं में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं। जिनमें देवताओं के चरणों से जलधाराएं प्रकट हुई हैं। ये धाराएं नदियों के रूप में धरती पर आईं और प्यास बुझाने में इनके जल का उपयोग किया गया। जल ही जीवन है, इसलिए इसे अमृत कहा गया, क्योंकि इसके पान से हम मरते नहीं।भगवान के चरण स्पर्श करने की परंपरा प्राचीन है। जिस जल से भगवान को स्नान कराया जाता है, वह जल उनकी प्रतिमा से होता हुआ चरण तक आता है और फिर नीचे बहता है। इसी जल को चरणामृत कहा जाता है यानी भगवान का स्पर्श किया हुआ जल। यह जल पवित्र माना जाता है और इसका पान करना यानी इसे पीना सौभाग्य। आजकल मंदिरों में एक कलश में तुलसी दल डालकर उसे भी चरणामृत के रूप मे दर्शनार्थियों को दिया जाता है।
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